काली बिहाने के बात हरे। दांत म मुखारी घसरत तरिया कोती जावत रहेंव। उदुप ले रद्दा म बैसाखू ममा संग भेंट होगे। बैसाखू ममा ह बइला कोचिया के नांव ले पुरा एतराब म परसिध हे। ममा ह देखिस ताहने पांव परिस। पांव पैलगी के बाद पूछेंव-कस ममा बिकट दिन म दिखेस ग! मनमाने नोट छापे म लगे रेहेस काते? तोर बिजनिस बनेच जोर पकडे हे लागथे!!
मोर दिल्लगी ल सुनके ओहा खिसियावत किथे -तोला हरियर उसरे हे परलोखिया!! हम का भुगतना भुगते हन। हमीं जानबो अउ वो ऊपर वाला मालिक ह जानही।
ओकर गोठ ल सुनके में ह दिल्लगी करई ल छोड के पूछेंव-का होगे ममा?का बिपत परगे ग?
ओहा बताइस-तें तो जानतेच हस भांचा में ह कतेक बच्छर ले मवेसी खरीदी-बिकरी के बुता करत हंव। पूरा इलाका भर म मोर बेंचे बइला-भैंसा के भरोसा म कतको किसनहा मन खेती किसानी के बुता करत हे। में ह अपन जुवानी ले ए बुता ल सुरू करे हंव अउ अपन परवार ल चलावत हंव। ए बुता म किसनहा मन ल उंकर काम बुता के लइक जानवर अउ मोला दू चार पइसा के फयदा हो जथे भांचा!फेर ए बुता बर ए गांव ले ओ गांव घूमे बर लागथे।
अइसने बुता बर में ह एक ठ गांव ले दू ठन बछवा बिसा के लानत रेहेंव त ओकर मालिक ह मोला एक ठ बिमरहा बछिया ल तको दे दिस चारा पानी के बेवस्था नीहे किके। बछवा ल पइसा देके बिसाये रेहेंव त ओकर रसीद बनायेंव अउ बछिया ल फोकट म देहे किके ओकर रसीद नी बनायेंव।
अब वो तीनों ठन जानवर ल रेंगावत-चरावत आवत रेहेंव भांचा। आधा रद्दा म रहेंव वइसने बेरा म नानकुन टेम्पो म दूझन मनखे मन आइन अउ आके मोर आगू म जमदूत बरोबर खडे होगे। लाम लाम चंदन चोवा, करिया तस्मा,मुंहू म मनमाने पान गोंजाय रहय। एक झन ह मुंहू के पान ल चबावत पच्च ले ओकर रसा ल थूंकिस अउ पूछिस-कहाँ से गाय ला रहे हो?
में ह बतायेंव-फलाना गांव के ढेकाना मनखे कना ले बिसा के लानत हंव। ताहने ओमन रसीद देखा किहिस। में ह रसीद ल घलो देखा देंव। अउ दूसर मनखे ल पूछेंव-तुमन कोन हरो साहब!!त ओहा मोला गुरेरत किहिस-हम गऊरक्छक हैं। तुम इन गायों को कहां ले जा रहे हो?
में ह मने मन केहेवं-वा रे! गऊरक्छक!!!! बछवा-बछिया के फरक ल नी जानस अऊ गऊरक्छक बने हस।
“तुम्हारे पास इन बैलों का रसीद है। इस बीमार गाय का रसीद देखाओ। “वो रसीदवाला मनखे ह किहिस। में ह जम्मो बात ल बतायेंव। त ओहा मोर बर गुसियागे अऊ मोला कथे-तुम हमारी गऊमाता को कटवाने ले जा रहे हो। अऊ दुनोंझन मोला मनमाने मारपीट करत लटपट छोडिन भांचा!! उपराहा म मोर तीनों ठन जानवर ल जोरके घलो लेगे।
ओकर गोठ ल सुनके बड दुख लागिस। फेर तुरते वोहा मोला पूछिस-कस भांचा!जब रोड म कोनो जानवर ह चपका के मर जाथे तब ए गऊरक्छक मन कहाँ रथे गा?
कोनो गाय ह पानी -पैरा बर तरसत रथे त काबर नी आवय?
कोंटल-कोंटल पलास्टिक अऊ झिल्ली ल खाके कतको गऊ ह अपन परान तियागत हे। तेहा इंकर आंखी म काबर नी दिखय?
में ह ओकर एको प्रश्न के उत्तर नी दे सकेंव। फेर ओला बतायेंव कि गऊ माता के सेवा खातिर सरकार ह कतको जघा म गऊशाला बनाय हे। ए अलग बात हरे कि कतको गऊशाला के चारा-पानी ल रखवार मन खावत हे।
रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)
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